पानीपत। आपने ‘ज्वेल थीफ’ सुना होगा, पर क्या ‘मील थीफ’ सुना है। मील थीफ यानी भोजन का चोर। सरकारी स्कूलों के बहुत से शिक्षकों को बच्चे इसी नाम से पुकारते हैं। दरअसल, सरकारी स्कूलों में मिड डे मिल का इंचार्ज बनाए गए शिक्षक अनुपस्थित बच्चों की हाजिरी लगाकर उनके हिस्से का राशन अपने घरों पर ले जाते हैं। अधिकारी इस तरफ से बेखबर है। अधिकारी निरीक्षण में केवल हाजिरी रजिस्टर और मिड डे मील की गुणवत्ता जांचने तक की सीमित रह जाते हैं।
अधिकारियों के आदेशों का मिला सहारा
सरकार और विभागीय अधिकारियों द्वारा एक भी दिन राशन बंद न करने के आदेश है, लेकिन कई स्कूलों में राशन समय पर नहीं पहुंच पाता। मिड डे मील इंचार्ज के लिए अधिकारियों के आदेश टांका लगाने में सहायक साबित हो रहे हैं। ऐसे अध्यापक सप्ताह तक राशन नहीं पकाते और रजिस्टर में पूरे पैसे चढ़ा देते हैं। इसका पैसा अपनी जैब में डाल लेते हैं।
गैरहाजिर रहते हैं 20 प्रतिशत बच्चे
जिले में करीब 65,200 बच्चे प्राइमरी और 30,100 बच्चे छठी से आठवीं कक्षा में शिक्षारत हैं। जिले में हर रोज 95,300 बच्चों को मिड डे मील देना होता है। सरकारी स्कूलों की एक कक्षा में करीब 80 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा में पहुंच पाते हैं। ऐसे में अध्यापक प्रतिदिन 20 प्रतिशत बच्चों के मिड डे मील की राशि हजम कर जाते हैं। यह राशि हजारों में बैठती है।
सप्लायर से मिलकर होता है खेल
मिड डे मील इंचार्ज स्कूल में ही नहीं बल्कि स्कूल से बाहर भी विभाग को टांका लगा रहे हैं। कुछ अध्यापक कम रेट में सामान खरीदकर बाजार रेट भर रहे हैं। ऐसे अध्यापक प्रत्येक खाद्य पदार्थ पर पैसे बचाने के अलावा कई खाद्य सामग्री भी बचा लेते हैं। मिड डे मील में पूरी खाद्य सामग्री नहीं डालते। कुछ स्कूलों में तो सामान्य मिड डे मील ही तैयार कर दिया जाता है। कुछ अध्यापक तो सप्लायर के साथ मिलकर टांका लगा रहे है। ऐसे स्कूलों में माह का खर्च कम होता है, लेकिन सामान अधिक उतार दिया जाता है
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