Wednesday, January 19, 2011

SONIPAT NEWS

शहर के जागे भाग, बनेगा ओवरब्रिज

गोहाना रोड फाटक पर बनने वाले ओवरब्रिज की आखिरी बाधा भी खत्म हो गई है। अब वह दिन 

दूर नहीं है, जब शहर के लोगों को ओवरब्रिज की सुविधा मिलेगी। 

शहरवासियों को गुस्सा आने का ओवरब्रिज सबसे बड़ा कारण था। यह तब संभव हो सका है, जब प्रदेश सरकार ने मंडी की तरफ जाने वाली तीसरी लेग का खुद ही खर्च उठाने की गारंटी रेलवे को दी है।

२० साल से ओवरब्रिज बनने का इंतजार कर रहे शहरवासियों को वर्ष 2011 यादगार रहेगा। इसी वर्ष गोहाना रोड फाटक पर ओवरब्रिज का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। पिछले काफी दिनों से ओवरब्रिज को लेकर रेलवे और प्रदेश सरकार में तनातनी बनी हुई थी। प्रदेश सरकार जहां ओवरब्रिज को तीन तरफ उतारना चाहती थी, वहीं रेलवे विभाग दो तरफ जाने का आधा हिस्सा देने के लिए तैयार था, लेकिन इससे शहर वासियों का भला नहीं हो रहा था। 

आखिरकार प्रदेश सरकार ने ही शहर के लोगों की भावना की कदर करते हुए मंडी की तरफ जाने वाली लेग का खुद ही खर्च उठाने का ऐलान किया है। इससे रेलवे ओवरब्रिज बनने का रास्ता पूरी तरह से साफ हो गया है। पीडब्ल्यूडी ने पहले से ही इसकी ड्राइंग रेलवे को भेज रखी है।

तोहफा

7 

करोड़ रुपए प्रदेश सरकार अलग से खर्च करेगी।

१४

करोड़ रुपए का रेलवे अपना हिस्सा ओवर ब्रिज के बनने में देगा।

सात करोड़ पर लटका था ओवरब्रिज

तीसरी लेग पर सात करोड़ रुपए खर्च होने थे। प्रदेश सरकार चाहती थी कि साढ़े तीन करोड़ रुपए रेलवे भी दे, लेकिन रेलवे ने इसके लिए इंकार कर दिया। अब कुल बजट के तीन हिस्से प्रदेश सरकार और एक हिस्सा रेलवे देगा।

यह है गोहाना रोड रेलवे ओवरब्रिज का खाका

रेलवे ओवरब्रिज गीता भवन चौक स्थित बत्रा पेट्रोल पंप से शुरू होकर गोहाना रोड पर ओम पेट्रोल पंप तक उतरेगा। दोनों ही तरफ ओवरब्रिज की लंबाई 360 मीटर की होगी, जबकि मंडी की तरफ मिशन चौक से पहले उतरेगा, जिसकी लंबाई 336 मीटर होगी। मंडी की तरफ जाने वाली तीसरी लेग वन-वे होगी। ओवरब्रिज से मिशन चौक पर सिर्फ उतरा जा सकता है, यहां से ऊपर चढऩे वाले लोग गोहाना रोड की तरफ से चढ़ेंगे। 

ञ्चप्रदेश सरकार ने तीसरी लेग का पूरा खर्च खुद ही उठाने का फैसला लिया है, ताकि ओवरब्रिज बन सके। प्रदेश सरकार ने इससे रेलवे को अवगत करा दिया है। अब रेलवे ने ड्राइंग को प्रोसेस में ले लिया है।

KU NEWS

परीक्षा से पहले 90 दिन पढ़ाना जरूरी

 काफी लंबी छुट्टियों के बाद कालेज खुले हैं लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि टीचर व स्टूडेंट्स को हाजिरी से भी छूट मिल गई। अप्रैल माह में संभावित परीक्षाओं से पहले लेक्चरर व स्टूडेंट्स को 90 दिन की हाजिरी पूरी करनी होगी। कालेजों में गड़बड़ाए शेडच्यूल के कारण हाल में प्रथम सेमेस्टर परीक्षाएं स्थगित करनी पड़ी। इसके चलते करीब 20 दिन अतिरिक्त कालेज बंद रहे। अप्रैल की परीक्षा से पहले कालेजों में पढ़ाई के लिए फरवरी तक का समय ही बाकी बचा था क्योंकि मार्च में स्टूडेंट्स सेल्फ स्टडी में लग जाते हैं और कालेज नहीं आते। लेकिन इस साल हुई लंबी छुट्टियों के चलते यूनिवर्सिटी ने नया फार्मूला निकाल लिया है।

सभी कालेजों को निर्देश दिए गए हैं कि परीक्षाओं तक 90 दिन की टीचिंग पूरी की जाए। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की तरफ से निर्देश मिलने के बाद लेक्चरर और स्टूडेंट्स दोनों ही चिंता में पड़ गए हैं। टीचर्स पर जहां पढ़ाई के साथ कालेज संबंधी अन्य कार्यो के संतुलन बैठाने की चिंता है, वहीं स्टूडेंट्स का कहना है कि आखिरी समय तक कक्षाएं लगाकर वो परीक्षा की तैयारी कैसे कर पाएंगे?

कुछ स्टूडेंट्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इतने कम समय में 90 दिन की कक्षाएं लगाना बहुत मुश्किल है। उधर गवर्नमेंट कालेज टीचर्स के लिए मामला और भी ज्यादा टेढ़ा हो गया है।

MID DAY MEAL IN HARYANA

पानीपत। आपने ‘ज्वेल थीफ’ सुना होगा, पर क्या ‘मील थीफ’ सुना है। मील थीफ यानी भोजन का चोर। सरकारी स्कूलों के बहुत से शिक्षकों को बच्चे इसी नाम से पुकारते हैं। दरअसल, सरकारी स्कूलों में मिड डे मिल का इंचार्ज बनाए गए शिक्षक अनुपस्थित बच्चों की हाजिरी लगाकर उनके हिस्से का राशन अपने घरों पर ले जाते हैं। अधिकारी इस तरफ से बेखबर है। अधिकारी निरीक्षण में केवल हाजिरी रजिस्टर और मिड डे मील की गुणवत्ता जांचने तक की सीमित रह जाते हैं।

अधिकारियों के आदेशों का मिला सहारा
सरकार और विभागीय अधिकारियों द्वारा एक भी दिन राशन बंद न करने के आदेश है, लेकिन कई स्कूलों में राशन समय पर नहीं पहुंच पाता। मिड डे मील इंचार्ज के लिए अधिकारियों के आदेश टांका लगाने में सहायक साबित हो रहे हैं। ऐसे अध्यापक सप्ताह तक राशन नहीं पकाते और रजिस्टर में पूरे पैसे चढ़ा देते हैं। इसका पैसा अपनी जैब में डाल लेते हैं।

गैरहाजिर रहते हैं 20 प्रतिशत बच्चे
जिले में करीब 65,200 बच्चे प्राइमरी और 30,100 बच्चे छठी से आठवीं कक्षा में शिक्षारत हैं। जिले में हर रोज 95,300 बच्चों को मिड डे मील देना होता है। सरकारी स्कूलों की एक कक्षा में करीब 80 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा में पहुंच पाते हैं। ऐसे में अध्यापक प्रतिदिन 20 प्रतिशत बच्चों के मिड डे मील की राशि हजम कर जाते हैं। यह राशि हजारों में बैठती है।

सप्लायर से मिलकर होता है खेल
मिड डे मील इंचार्ज स्कूल में ही नहीं बल्कि स्कूल से बाहर भी विभाग को टांका लगा रहे हैं। कुछ अध्यापक कम रेट में सामान खरीदकर बाजार रेट भर रहे हैं। ऐसे अध्यापक प्रत्येक खाद्य पदार्थ पर पैसे बचाने के अलावा कई खाद्य सामग्री भी बचा लेते हैं। मिड डे मील में पूरी खाद्य सामग्री नहीं डालते। कुछ स्कूलों में तो सामान्य मिड डे मील ही तैयार कर दिया जाता है। कुछ अध्यापक तो सप्लायर के साथ मिलकर टांका लगा रहे है। ऐसे स्कूलों में माह का खर्च कम होता है, लेकिन सामान अधिक उतार दिया जाता है

HOLIDAYS ARE OVER

SCHOOLS AND COLLEGES ARE OPEN AGAIN HOLIDAYS ARE OVER

Sunday, January 9, 2011

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